@Nagon Beach ,Mumbai |
अजब गजब सी है ये ज़िन्दगी की बही
इसमें सपनो की बढती उधारी कही
तो कही रिश्तो पे है चढ़ता practicality का सूद
और इन सब के बीच में कही सुबकता सा मै
कही जुड़ता सा मैं ,कही बिखरता सा मै
कही मुस्कराता सा मैं और कही रोता सा मैं
मै को तलाशता मैं
मै मे ही कही खोता सा मैं
कुछ चेहरों को हर चेहरे में तलाशता सा मै
फटी जेब में अपनों की रेजगारी सम्हालता मै
उलझे धागों को सुलझाता सा मै
थोडा अकेला सा थोडा तन्हा सा मै
कशमकश है ये ज़िन्दगी यूँ तो
इन कसमकशो को ज़िन्दगी की बही मे समेटता मै
-- प्रियदर्शी
No comments:
Post a Comment