Friday, January 15

प्रेम





( राधारानी का नाम इतिहास मे प्रेम के पर्यायवाची के रूप मे प्रुय्कत हुआ है । किन्तु ये रचना मैंने उनको एकसाधरण प्रेमिका के रूप मे देखते हुए लिखने की कोशिश की है । )


माँ कहती थी एक कहानी
गोकुल का था कान्हा
बरसाने की राधा रानी
माँ कहती थी एक कहानी
बचपन के थे वो साथी
योवन के वो थे सहचारी

सपनो के झूले वो झूला करते थे
प्यारी प्यारी प्यार की बाते वो करते थे
उनकी खुशियों को ग्रहण लगा
समय का चक्का घूम गया
राधा-राधे का साथ छूट गया
थोडा समय और बीता
शयद कन्हया उससे अब भूल गया

कान्हा की किस्मत का चाका घूमा
खुशियों ने उसका दामन चूमा
मिल गे उसे राजसिंघासन
अब राधा का क्या होगा चिंतन ?

कसमे वादे सब छूट गए
राधा के सपने सब टूट गए
आंसू से उसके यमुना फिर उम्ड़ाए
क्या कान्हा को एक पल राधा की याद आई ?

कान्हा का भी ब्याह हुआ
महल मैं बजने लगी शहनाई
राधा के जीवन मे उदासी गहराई
क्या कान्हा की आँख तब भी छलकायी

गिनती कुछ ठीक याद नही
हज़ार से लेकिन कुछ ऊपर थी
हा इतनी ही तो कान्हा की सह्च्चारी थी

सबको महलो में स्थान मिला
पूरा मान सम्मान मिला
इतनो के बीच मे भी
एक राधा को क्यों नही स्थान मिला

क्या कान्हा ने राधा को कभी याद किया
क्या राधा ने एक पल भी कान्हा को विसार दिया
प्रेम की ये कैसे विषमता है
एक के जीवन के लिए दुसरे को मरना पड़ता हैं

राधा ने क्या चाहा था क्या माँगा था
वो तो प्रेम की पूजारन थी
प्रेम के दीपक मे थोडा स्नेह का घी ही तो चाहा था

फिर उसको क्यूँ इतना दुत्कार मिला
कान्हा ने तो शयद सब पाया
मगर राधा को तो सिर्फ
पन्नो मे स्थान मिला
बहाने बहुत है खुद को समझाने के
बहते हुए आंसुओं को सिम्टाने के
कहने को तो कहते है
प्रेमी पाते नही सिर्फ खोते हैं
अगर सिर्फ खोना ही प्यार है
तो इस प्यार को धिकार है

इस प्रेम को संजाने मे कितने उदारण प्रयोग हुए
रोमियो-जुलिएट .हीर-रांझा .लैला मजनू
पर इनमे से कितने के सयोंग हुए

खुसिया जब यहाँ नही तो स्वर्ग लेकर क्या करना है
जब मरना ही है प्रेमियों को तो जन्म लेकर क्या करना है ?
---प्रियदर्शी

2 comments:

ashish said...

awesome.gazab hai yar!aur kuch nahi kahna.

Anonymous said...

waoooooo.....super like...... -ashi

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