Thursday, February 4

आंसू


 

 (कहते है की किसी को अपने आंसू कभी नही दिखाने चहिये क्योकि ये उसकी कमजोरी को दर्शाते हैं ,किन्तु मेरा मानव ह्रदय इतनी समझदारी नही दिखा  पाता हैं और मैं अब भी रोता हूँ )

हाँ , अब भी मे रोता हूँ 
छत के एक अँधेरे कोने में
दुखो की अतिरंजता में 
अब भी मैं रोता हूँ 

शर्ट की मैली बाहों से 
आँखें मलते मलते रोता हूँ
हाथों मैं चेहरे को 
छिपा छिपा के रोता हूँ

कारण बहुत हैं इन आसुओं के
किन्तु कभी कभी बिन कारण के भी रोता हूँ
कभी कभी हस्ते हस्ते रोता हूँ
हाँ , अब भी मे रोता हूँ 

इस स्वार्थी संसार में 
मोल नही हैं इन बूंदों का 
ये जान समाज कर भी 
दिल को थोडा हल्का करने के लिए 
हाँ , अब भी मे रोता हूँ 

कभी कभी विदा लेने का 
भी मन करता हैं
विदा इस संसार से
विदा दुखो के बाजार से

फिर एक नयी दूकान को
अच्छा जान ठहरता हूँ
छल जाने के बाद पुन: 
फूट फूटके रोता हूँ
हाँ अब भी में रोता हूँ 

हर बार की तरह पुन: 
आंसू समेट खड़ा हूँ मैं
इस बाजार का एक ग्राहक 
बन ठहर गया हूँ मैं 
शयद कुछ आंसू
अब भी मेरा बाजार के उस नुक्कड़ पर 
रास्ता मेरा तकते हैं 
               ---प्रियदर्शी  

1 comment:

Mohini said...

Hriday ke bhavonki hridaysparshi abhivyakti! bas hriday ko choo gayi! Priyadarshi ji! Aisehi anamol upahar dete rahiyen.......ham intajar kar rahe hain!

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