आज जैसे ही एक आम दिन आज से ठीक एक साल पहले मुंबई आया था , बैग में सामान से ज्यादा आँखों में सपने लिए , क्या खोया क्या पाया का बही-खाता तो नहीं बना सकता , पर हाँ पैसे की ताकत और मेहनत का सकून क्या होता है, ज़रूर सीखा मैंने यहाँ आकर . पर शायद कीमत थोड़ी ज्यादा देनी पड़ गयी .
कुछ दोस्त छूटे , कुछ अपने रूठे, और कुछ सपने बहुत पीछे छूट गए , फ़िल्मी dialog है पर सच ही है
" ये शहर हमे देता है उससे कहीं ज्यादा ले लेता है ", सच तो यह है इस शहर में ज़िन्दगी local के सफ़र की तरह ही है , किसी को अगले station पे line change करनी है तो किसी को थोडा और आगे जाना है.
सपनो के इस शहर मे BEST buses के धक्के कब इंसान को हकीक़त समझा देते है कुछ पता ही नहीं चलता
लोग भी कहने लगे अब मैं ज्यादा समझदार हो गया हूँ , सही ही कहते होंगे आखिर जज्बातों को तोलने के कई तरह के वजन जो हो गए है मेरे पास , मसलन पैसा वक़्त सामने वाले की हैसियत , अब पता नहीं क्यों कुछ बोलने से पहले सोचता हूँ फलां आदमी मुझे sentimental fool
तो नहीं समझेगा, इसलिए अक्सर चुप ही रहता हूँ .
पर शिकवा नहीं है कुछ किसी से ,पर हाँ अफ़सोस होता है कभी कभी की वैसा ना होता तो अच्छा होता
अब एहसास होता है की ये सच में मायानगरी ही तो है यह शहर .
ना जाने और कितना वक़्त गुजारना है इस मस्त मौला शहर में , बस ज़ेहन में अक्सर ये सवाल आता है की मेरा station कब आएगा ?
ए दिल है मुश्किल जीना यहाँ
ज़रा हटके ज़रा बचके यह है bombay मेरी जान.
------ प्रियदर्शी
------ प्रियदर्शी
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