Tuesday, August 30

एहसास





तेरे जाने का गम कुछ कम न था उसपे
तुझे  रोक न पाने का  एहसास जीने नही देता 
इतना तनहा तो हम अपनी तनहयों  मे भी न था
जितने तनहा  आजकल महफ़िलो मे हो जाते है 
जाने क्या खला सी है  बसी इस दिल मे कही
जो  इन लबो को अब  मुस्कराने भी नही देती

तेरी मोहब्बत गुजर गयी बंद  मुट्ठी मे खुस्ख रेत की तरह
 इस  बात का दर्द  बहुत है इस सीने मे  आज भी 
मेरी मोहब्बत की नमी उस रेत को गीला न कर सकी
इस एहसास की चुभन तो  मरने भी नही देती

क्यूँ सूखा एह्सशो का  दरिया हमारे दरमियाँ 
 ये तो शायद मे समझ न सकूँगा कभी 
 पर तेरी यादे आज भी इन् तनहा रातो मे
 इन नम आँखों को सूखने क्यूँ नही देती

 तुम  आओगी नही अब कभी इसका यकीं है
पर तेरे लौटने की  उम्मीद इस कदर है
 कि तेरी  सूरत इस दिल से मिटने नही देती

 शायद भूल जाऊँगा तुझे एक दिन मे भी
 बस उस दिन के इंतज़ार मे आज तक 
 ये आँखे उन  लम्हों को ओझल होने नही देती

 तू खुश  है मेरे बिना बस इतना यकीन दे दे
मुझे तेरी नाखुशी की फ़िक्र आज भी अक्सर 
     इन सर्द नम रातो मे  सोने नही देती

------------------ प्रियदर्शी

1 comment:

Mohini Puranik said...

क्या कहूँ?

क्यों इंसान के दिल के दर्द को लिखते हो आप
क्यों लफ्जों से जख्म गीले करते हो आप
यह दर्द पढ़ा नहीं जाता फिर बार बार
क्यों लिखके हमें यहाँ बुलाते हो आप

Thanks for sharing.

Your fan,
Mohinee.....

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