Monday, January 24

" बग्ग्गर "



( रोजी रोटी के चक्कर  मे न जाने कितने लोग गावं छोड़ कर सेहर आते हैं....पर गावं की यादें  ज़िन्दगी भर साथ रहती है. शहर की भागा दौड़ी  मे हम बहुत कुछ पीछे छोड़ देते हैं ...ये कविता कुछ उन्ही  भावों को टटोलती हैं )

किस्सा ये उन दिनों का है जब हम गावं मे रहा करते थे
बिजली,मोटर,मल्टीप्लेक्स कुछ भी न थे वहा 
पर उस मिटटी की खुसबू मैं अजीब सा सुकून था 
जब भी आँखे मूंदता  हूँ 
यादो के धुन्धुले आईने मे उसकी तस्वीर नज़र आती है 
वो सुबह की गीली घास पर चहल कदमियां
हमारी वानर टोली के अजब खेल 
मोरपंख बीनने के लिए सवेरे सवेरे बाग़ मे जाना 
सब जैसे किसी दूसरी दुनिया की बाते लगती हैं 
कितनी अलग सी लगती है  आज की ये हवा ........


 खेतो के बीच मे एक मिटटी का घर था 
न जाने क्यूँ सब उससे "बग्गर" कहते थे 
मवेशियों के शोर के बीच मे बाबा की भारी आवाज़ 
आज भी कानो मे  अक्सर गूंजती रहती हैं 
सब गायों के नाम थे बाकायदा ...चंपा,रामप्यारी ..
बस बाबा की एक हांक पर भागी चली आती थी 
न जाने कौन सा बंधन था वो ....

फास्ट-फ़ूड की जगह छप्पर मे खोसा हुआ सत्तू था
बस कटोरी मे घोला और  पी गए  
सब कुछ कितना अजीब लगता है आज 

एक पक्का मकान भी था हमारा ,वहा घर की औरतें रहा करती थी 
कभी अचार की अम्बियाँ सुखाती तो कभी राब का शरबत  खेतो पर भिजवाती
दिन भर काम ही नही खत्म  होता उनका मानो की मशीन थी वो 
आज भी न जाने क्यों जब जुबान फेरता हूँ ओंठो पर
तो कही उस शरबत की मिठास बाकी लगती है 

अभी परसों की बात है ,पापा ने करोल बाग़ मे नया फ्लैट ख़रीदा हैं 
३ बेडरूम फुल्ली फर्निशेद ....AC भी लगवा लिया 
कहते है दिल्ली की हवा मे गर्मी बहुत हैं
 खाने के वक़्त बात चली तो माँ ने पूंछा ... नए घर का नाम क्या होगा 
न जाने क्यों मुह से निकल गया 
"बग्ग्गर" ...................
आज भी कुछ अलग सा सुकून है नाम में 
                                         ---प्रियदर्शी








5 comments:

Mohini Puranik said...

आप भी रात भर यही सोचते रहते हो क्या....खुबसूरत कविता ......मै तो यही सोचती हू| written on same issue today .......do check out when get published
हम क्यो अपने आप को सुखी मानते है,
अपनी सुख की परिभाषा क्यो नही जानते है,
भाग रहे है उनके पीछे,
जो संस्कृती मे अभी है बच्चे!
ऐसेही उपहार देते रहिये :)

Priyadarshi said...

thnks mohi for appreciation ,keep smiing :)

Anonymous said...

mat poem bhai...lived the moments again while i was reading...
Thanks


Avneesh(crazyfundu)

varsha said...

lovely nostalgic words!
concrete ke jungle mein woh sukoon jagaane ke liye bas naam hi kafi hai !

Priyadarshi said...

@varsha ji ...thnks for appreciation,really it gives support to write my feeling without hesitation

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